हर युग का ज्ञान कला देती रहती है
हर युग की शोभा संस्कृति लेती रहती है
इन दोनों से भूषित वेशित और मंडित
हर नारी प्रतिमा एक दिव्य कथा कहती है
कला और संस्कृति को अपने आंचल में संजोए प्रत्येक भारतीय नारी युगों युगों से अनेक दैवीय एवं मानवीय मूल्यों की धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती रही है.
आधुनिक युग में महिलाओं की भूमिका निर्धारित करने से पूर्व हमें भारतीय महिलाओं के गौरवशाली अतीत के झरोखे में झांकना होगा भारत की गौरव मान विभूति आचार्य मनु ने मनुस्मृति के श्लोक की अर्धा ली मैं ही भारतीय नारी के संपूर्ण वैभव प्रतिष्ठा और सम्मान को पूर्णरूपेण समाहित कर दिया है
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तंत्र देवता
अर्थात जहां नारी की प्रतिष्ठा और सम्मान होता है वहां समस्त दैवीय शक्तियां निवास करती हैं भारत के उस अतीत में जहां नारियों को इतनी श्रद्धा और आदर के साथ देखा जाता था उस समय देश भी संपूर्ण वैभव और संपन्नता से परिपूर्ण हो कर सोने की चिड़िया कहलाता था नारी के सम्मान और प्रतिष्ठा के कारण ही धर्म की इस भूमि भारत वसुंधरा पर अवतरित होने के लिए देवता भी सदैव लालायित रहते थे
नारी के इसी श्रद्धेय स्वरूप को कवि श्री जयशंकर प्रसाद जी ने भी अपनी महा कृति कामायनी मैं सराहा है
नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पग तल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में
इस अपरमित श्रद्धा के साथ ही प्राचीन युग में नारी के पांडित्य पूर्ण रूप के भी दर्शन होते हैं गार्गी मैत्रेई विद्योत्तमा आदि अनेक विदुषी यों के नाम इसी श्रेणी में आते हैं श्री मंडन मिश्र की पत्नी द्वारा श्री शंकराचार्य के परास्त होने का उल्लेख नारी की विद्वत्ता को ही सिद्ध करता है देवी सीता माता अनसूया सती सावित्री और दमयंती आदि भारतीय नारियां विश्व पटल पर गौरवान्वित है
समय ने करवट ली और विश्व में गौरवान्वित भारतीय नारी की दशा दीन हीन और मलिन होती चली गई भारतीय कला और संस्कृति के प्रति लालायित विदेशी आक्रमणकारियों ने देश की सभ्यता कला और संस्कृति का तो विनाश किया ही साथ ही भारतीय ललना की अस्मिता को भी लूटने से न चुके परिणाम स्वरूप भारतीय नारी पर्दे में कैद कर दी गई और घर की चहारदीवारी ही उसका कार्य क्षेत्र बना दिया गया भारतीय नारी की संपूर्ण प्रतिष्ठा सम्मान और उसकी विद्वता भी समाज के अनेक बंधनों में कैद होकर घुट-घुट करअपना दम तोड़ने लगी नारी की इस बंधन कारी रूप से प्रभावित होकर ही शायद श्री मैथिलीशरण गुप्त जैसे राष्ट्रीय कवि नारी के इस रूप को उद्घाटित कर सके
नारी जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आंचल में है दूध और आंखों में पानी
इतना ही नहीं कवि की निम्नांकित पंक्तियों में नारी के प्रति नर की दूषित भावनाओं की झलक भी दृष्टिगोचर होती है
नर के बांटे में क्या नारी की
नग्न मूर्ति ही आई
मां बेटी या बहिन साथ में
और नहीं वह लाई
पुरुष की इन दूषित आकांक्षा ने नारी को पुरुष की दासी बना दिया नारी को स्वार्थ मई दृष्टि से देखा जाता रहा अनेक यात्राओं से प्रताड़ित किया जा कर नारी को पशुओं की श्रेणी में ला खड़ा किया इस प्रकार पुरुष वर्ग की अनेक प्रकार की प्रताड़ना उसे प्रताड़ित होती हुई नारी स्वयं अपने आप को पुरुष की दासी मात्र समझने लगी वह अपने वास्तविक कर्तव्य और अधिकारों को भुला बैठे परिणाम स्वरूप दहेज प्रथा सती प्रथा बाल विवाह अनमेल विवाह आदि अनेक कुप्रथा ओं ने जन्म लिया
सर्वे दिन रहत न एक समान
इस कहावत को चरितार्थ करते हुए नारी इतिहास में भी पुनः परिवर्तन प्रारंभ हुआ
स्वाधीनता प्राप्ति के साथ ही भारतीय समाज में नारी शिक्षा वह जागृति के प्रति भी चेतना जागृत हुई कवि की आवाज गूंज उठी
मुक्त करो नारी को मानव
मुक्त करो नारी को
चिर वंदिता नारी को
बुद्धिजीवियों द्वारा नारी
मुक्ति आंदोलन महिलाओं को समान अधिकार दिलाने हेतु आवाज बुलंद की गई अनेक समाज सुधार को तथा राष्ट्र के करण धारों ने नारी को पुरुष के समकक्ष लाने के लिए अनेक नियम विधाना को लागू किया अनेक समाजसेवी संस्थाओं ने महिला मंडल की स्थापना तथा महिला संगठन द्वारा महिलाओं को समान अधिकार दिलाने वह महिलाओं में जागरूकता लाने का बीड़ा उठाया है. इन प्रयासों के परिणाम स्वरूप यद्यपि नारी में पूर्व की अपेक्षा जागरूकता आई है वह सुशिक्षित तथा समान अधिकार नी बनने में सबल ही रही है परंतु फिर भी व्यावहारिक स्तर पर वह पुरुष भोग्या और दासी ही अधिक है समकक्ष कम 21वीं सदी की ओर बढ़ते हुए इतने प्रगतिशील व विकसित युग में भी भारतीय नारी अपने उपेक्षित और शोषित दशा से पूर्ण तरह उबर नहीं सकी है. यह निश्चित ही एक चिंता का विषय है इस चिंता से मुक्ति तभी संभव है जब नारी स्वयं जागरूक हो
आज वह समय आ गया है जब नारी को स्वयं जागना ही होगा पुरुषों के भरोसे रह कर हम अपने को सवल नहीं बना सकते नारियों की दीन हीन दशा से मुक्ति पाने के लिए नारियों को स्वयं जनजागृति विशेषकर महिला जागृति का बीड़ा उठाना होगा उन्हें अपने शक्ति को पहचानना होगा उन्हें यह जानना होगा कि वह अबला नहीं सबला है वे पुरुषों की शक्ति हैं शक्ति का अक्षय स्रोत है वह देवी हैं दुर्गा है शिवा है और वही प्राण दायिनी शक्ति है वही मानव जाति की जन्म दात्री है वही संस्कार प्रणेता है उनमें सब कुछ कर सकने की क्षमता है वही अनीति अत्याचार दुराचार उत्पीड़न भ्रष्टाचार जैसी प्रवृत्तियों का अंत करने के लिए क्रांति की ज्वाला और चिंगारी बनकर नए समाज का निर्माण कर राष्ट्रोत्थाना मैं नीव का पत्थर की तरह सुदृढ़ सहयोग प्रदान कर सकती है
युगो युगो से प्रताड़ित होती रही नारी अब और प्रताड़ित नहीं होगी नारी को अपना खोया हुआ सम्मान स्वयं ही पुनः संजोना होगा इस प्रगति पथ पर बढ़ती हुई नारी के लिए किसी कवि की यह पंक्तियां निश्चय ही प्रेरणा दाई रहेंगी
कर पदा घात अब मिथ्या के मस्तक पर
सत्यान्वेषण के पथ पर निकलो नारी
तुम बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया का
अब बनो क्रांति की ज्वाला की चिंगारी
मानव की जन्म दात्री नारी सदा से ही अपने विभिन्न रूपों में भूमिका निभाते हुए मानव जाति को अंकुरित पल्लवित पुष्पित और प्रगति पथ पर विकसित करती रही है बालक में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करने में वह एक अच्छी मां की भूमिका अदा करती है तो परिवार के लिए सच्ची सेविका। पति के साथ रमण करने में बहुत पत्नी है तो दूसरी ओर वह धर्मशिला शीला भी है वह पुरुष के लिए परम मित्र भी हैं और मंत्रणा की प्रतिमूर्ति भी वह पृथ्वी के समान क्षमाशील और सहनशील है तो पति के दुख में साहस और अदम्य बल की साक्षात देवी भी महाकवि कालिदास के अमर ग्रंथ महाकाव्य रघुवंश में अज विलाप के समय नारी इंदुमती गृहणी मंत्री सच्ची सलाहकार सखी प्रिय शिष्य पत्नी मधुर भाषणी धर्मशीला सुख दुख में समान साथ देने वाली आदि अनेक रूपों में प्रस्तुत किया गया है
सच तो यह है कि नारी पुरुष की पूरक सत्ता है उसकी शक्ति है उसके बिना पुरुष का जीवन अपूर्ण है नारी ही उसे पूर्ण करती है किसी भी समाज का निर्माण भी स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर होता है आधुनिक युग मैं यह समझना बहुत आवश्यक है कि समाज के केवल आधे अंश का विकास कर वास्तविक प्रगति संभव नहीं है अतः राष्ट्र निर्माण के लिए समाज के उत्थान हेतु नारी की शक्ति को पहचान ना ही होगा नारी को स्वयं भी अपनी आत्मशक्ति के प्रति विश्वास जागृत करना होगा तभी वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में साहस और हिम्मत के साथ अपनी भूमिका अदा कर सकती है
आधुनिक युग में समाज और राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालने वाली विषम परिस्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है कि पुरुष की आदि शक्ति नारी भी अपनी भूमिका सही ढंग से पूर्ण कर सके परिवार और समाज में अपना उचित स्थान ग्रहण करके अपने जीवन कर्तव्य का पालन उचित तरीके से करें तभी मानव समाज का कल्याण और देशवासियों का उद्धार संभव है इस सृष्टि क्रम में पुरुष का साथ देते हुए जीवन यात्रा में अपनी विभिन्न भूमिकाओं के महत्व को समझ कर उन्हें किस प्रकार पूर्ण करना चाहिए यह निम्नांकित बिंदुओं से स्पष्ट है ।
1,जन्म दात्री एवं मां के रूप में
संसार का प्रत्येक प्राणी मां के गर्भ से जन्म लेता है उसी की गोद में पलता और उसका ही स्वभाव संस्कार लेकर बढ़ता है नारी का क्या महत्व है इस प्रश्न का उत्तर एक ही शब्द में निहित है कि वह जननी है यदि जननी ना हो तो सृष्टि का संपादन और समाज का सृजन संभावना है जननी का अभाव सृष्टि की शून्यता का द्योतक है सृष्टि की मूलाधार नारी के महत्व पर तर्क वितर्क करना अपनी बुद्धि की हीनता प्रदर्शित करता है
भारतीय समाज में गर्भ धारण करना एवं संतानोत्पत्ति करना भी संस्कार की श्रेणी में आता है गर्भधारण के समय से ही बालक के संस्कारों का बीजारोपण प्रारंभ हो जाता है अभी तक युगों से अशिक्षित और पराधीन नारी स्वयं को संतान उत्पत्ति की केवल एक मशीन समझती रही है आज की शिक्षित नारी को वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित इस बात को भलीभांति समझ लेना चाहिए की जन्म दात्री एवं मां के रूप में अपने कर्तव्य का सही पालन कर सुसंस्कार युक्त बालक का निर्माण कर समाज व राष्ट्र के लिए कितना महत्वपूर्ण उपहार देने का दायित्व वह निभा रही है गर्भाधान के समय माता पिता के संस्कार आचार विचार विशेषकर मां की मन स्थिति स्वास्थ्य सभी कुछ मिलकर बालक में संस्कारों का बीजारोपण करते हैं यही संस्कार बाद में उचित वातावरण पाकर पुष्पित और पल्लवित होकर मानव व्यक्तित्व की पहचान बनते हैं अतः प्रत्येक नारी को आधुनिक युग में इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है की जन्म दात्री एवं मां के रूप में उसकी भूमिका समाज निर्माण एवं राष्ट्र उत्थान हेतु कितनी महत्वपूर्ण है उसे स्वयं सु संस्कारित होकर समाज को संस्कार युक्त संतान देकर अपना कर्तव्य पूर्ण करना होगा तभी वह धारिका धात्री और निर्मात्री के रूप में सम्माननीय हो सकती है शुभ संस्कार वाली मां ही बालक को शुभ संस्कार दे सकती है यदि नारी अपने तन मन से प्रसन्न और प्रफुल्लित रहेगी तो उसकी सृष्टि प्रसन्न और प्रफुल्लित होगी और यदि वह मलिन होगी तो उसका सृजन भी उतना ही मलिन और अयोग्य होगा वीर अभिमन्यु का उदाहरण इस बात का जीता जागता प्रमाण है उसने गर्व काल में वीरता के गुणों का समावेश एवं चक्रव्यूह भेदन की कला का ज्ञान प्राप्त कर लिया था आज भी अनेक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है की गर्भावस्था काल में जिस प्रकार के साहित्य संगीत ज्ञान अनुभव या अन्य जिस प्रकार की रुचि मां की होती है वैसी ही रुचि और विचार बालक में पाए जाते हैं
प्रत्येक शिशु की प्रथम पाठशाला उसकी मां की गोद ही होती है मां के स्तन का अमृत पान कर बहुत पुष्ट होता है उसकी हंसी से हंसना और उसकी वाणी से बोलना सीखता है मां के द्वारा अंकुरित संस्कारों को लेकर ही वह जीवन क्षेत्र में पदार्पण करता है भारत का अतीत इस बात का साक्षी है की माताएं अपनी मान मर्यादा की प्रतिष्ठा के लिए संतान को बड़े उत्तरदायित्व पूर्ण ढंग से पालती थी देश काल और समाज की आवश्यकता के अनुरूप सांचे में संतान को डालना वह अपना कर्तव्य समझते थे यही कारण है कि युगा नुसार जब संत महात्मा त्यागी दानी वीर योद्धा और बलिदानों की आवश्यकता पड़ेगी तब इस मां ने ही पाल पाल कर दिए हैं
अपने दायित्व को ठीक प्रकार से निभा सकने के लिए आवश्यक है कि नारी को स्वयं अपना विकास करने का समुचित अवसर दिया जाए उसे सारे शैक्षणिक और सामाजिक अधिकार समुचित रूप से दिए जाएं जिस मां का स्वयं अपना विकास ना हुआ हो वह भला विकासशील संतान देवी कैसे सकती है जिसको देश काल की आवश्यकता समाज की स्थिति एवं संसार की गतिविधि का स्वयं ही ज्ञान ना हो वह उसके अनुसार अपनी संतान को किस प्रकार बना सकती है
2, सु ग्रहणी एवं सुयोग्य पत्नी के रूप में
जिस प्रकार अग्नि शिखा सहित ही दीपक दीपक कहलाता है उसी प्रकार सुयोग्य सुशील और सु ग्रहणी के रूप में ही पत्नी पत्नी मानी जाएगी अयोग्य विवाहित आएं वास्तव में मानव शरीर में पक्षाघात के समान ही है जीवन रूपी रथ में टूटे पहिए और उन्नति अभियान में विखंडित पक्ष की तरह ही बेकार है
कहना ना होगा कि इस आदर्श रूप में पुरुष की पूर्ति नारी तब ही कर सकती है जब उन्हें इस कर्तव्य के योग्य होने का अवसर दिया जाए जब तक नारी को बच्चा पैदा करने की मशीन विषय भोग का समाधान और चूल्हे चौके की दासी मात्र समझा जाता रहेगा तब तक उपर्युक्त आदर्श पत्नी अपेक्षा करना मूर्खता ही होगी
नारी पुरुष की अर्धांगिनी कहीं गई है पुरुष के बिना नारी अपूर्ण है उसी प्रकार नारी के बिना पुरुष अपूर्ण है परिवार तथा समाज रूपी रथ केवल पुरुष रूपी एक पहिए पर एक दिन भी नहीं चल सकता आधुनिक युग में भी परिवार के कल्याण समाज के उत्थान के लिए नारी को अपनी अहम भूमिका को निभाना होगा वह सुशिक्षित होकर पत्नी व सु ग्रहणी के कर्तव्यों को भली-भांति पूर्ण कर सकती है.... क्रमशः